देश के विभिन्न क्षेत्रों में किसानों के द्वारा अलग-अलग फसलों की खेती की जाती है, जिसमें समय-समय पर विभिन्न कीट-रोगों का प्रकोप होता रहता है। जिससे न केवल फसल की लागत में वृद्धि होती है बल्कि फसल की हानि होने से किसानों को काफी नुकसान होता है। ऐसे में किसानों को समय पर इन कीट-रोगों की पहचान कर उनका नियंत्रण कर लेना चाहिए ताकि फसल को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। इसी तरह आलू की फसल में लाही (Aphid) या मांहू या चेपा कीट का प्रकोप होता है। मांहू कीट एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। ये रस चूसने वाले कीट की श्रेणी में आते हैं। माइजक परसिकी ( Myzus persicae) व गौसिपी ( Aphis gossypii) नामक मांहू आलू की फसल पर प्रत्यक्ष रूप से तो ज़्यादा नुकसान नहीं पहुँचाते हैं परंतु ये विषाणुओं को फैलाते हैं। इन वायरस रोगों से फसल को भारी नुकसान होता है।
किसान इस तरह करें आलू में मांहू या चेपा कीट का नियंत्रण -
रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन में कीट प्रमुख बाधक हैं। ये पत्तियों का रस चुसतें हैं फलतः पौधे कमजोर हो जाते हैं। पत्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जातीं हैं। फसल या खेतों में मांहू के प्रभाव को आँकने के लिए उनकी गिनती 100 यौगिक पत्तियों पर प्रति सप्ताह की जाती हैं। यदि इनकी संख्या 20 माहुं/100 पत्ती हो जाए तो इस पर रसायन का छिडकाव जरूरी हो जाता है।
नियंत्रण करने के लिए इन दवाइयों का स्प्रे करें =>
1. प्रोपेनोफास-50%EC -
प्रति एकड- 400ml -200लीटर
2. इमिडाक्लोप्रिड-70%WG -
प्रति एकड- 300-400ग्राम -200लीटर
3.इथियान-50%EC-
प्रति एकड-400-500ml -200लीटर
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